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तब्लीगी जमात के कारनामे से बदनाम मुस्लिम बिरादरी के प्रायश्चित का एक ही रास्ता - "घर वापसी"

Updated: Apr 28, 2020



तब्लीगी जमात का नाम अभी घर घर पहुंच जाने के बाद भी उसके काम और उद्देश्य के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। पूछने पर बड़े बड़े विद्वान और नेता भी बगलें झांकने लगते हैं। जबकि तब्लीगी जमात लगभग सौ साल से काम कर रही है। इसका उद्देश्य बिल्कुल स्प्ष्ट है – मुसलमानों को पक्का मुसलमान बनाना।


तब्लीगी जमात का मकसद


तब्लीग यानी प्रचार की जमात मुसलमानों के बीच हरेक गैर इस्लामी चीज छोड़ने का प्रचार करती है। खान पान, जीवन शैली, पोशाक ,मान्यताएं , संसर्ग, भाषा आदि सब कुछ । प्रसिद्ध विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान की पुस्तक तबल्गी मूवमेंट से इसकी प्रामाणिक जानकारी मिलती है। इस जमात के संस्थापक मौलाना इलिहास को यह देख कर भारी रंज होता था कि दिल्ली के आसपास के मुसलमान सदियों बाद भी बहुत चीजों में हिंदू रंगत लिए हुए थे। वो गोमांस नहीं खाते थे। चचेरी बहनों से शादी नहीं करते थे। कुंडल, कड़ा धारण करते थे। चोटी रखते थे। यहां तक कि अपना नाम भी हिंदुओं जैसे रखते थे। हिंदू त्यौहार मनाते और कुछ तो कलमा पढ़ना भी नहीं जानते थे। वास्तव में मेवाती मुसलमान अपनी परंपराओं में आधे हिंदू थे। इसी से क्षब्द होकर मौलाना इलियास ने मुसलमानों को कथित तौर पर सही राह पर लाना तय किया।

मौलान इलियास ने मुसलमानों में हिंदू प्रभाव का कारण मिलजुल कर रहना समझा था। उनकी समझ से इसका उपाय उन्हें हिंदुओं से अलग करना था ताकि मुसलमानों को बुरे प्रभाव से मुक्त किया जाए। इस प्रक्रिया के बारे में मौलाना वहीदुद्दीन लिखते हैं कि कुछ दिन तक इस्लामी व्यवहार का प्रशिक्षण देकर उन्हें नया मनुष्य बना दिया गया। यानी उन्हें अपनी जड़ से उखाड़ कर , दिमागी धुलाई करके , हर चीज में अलग किया गया। खास पोशाक , खानपान, खास दाढ़ी , बोलचाल आदि अपनाना इसके प्रतीक थे। तब्लीगी जमात में प्रशिक्षित मुसलमानों ने वापस जाकर स्थानीय मेवातियों में वही प्रचार किया। वास्तव में यही जमात का मिशन है- हिंदुओ के साथ मिल जुल कर रहने वाले मुसलमानों को पूरी तरह अलग करना। उन्हें पूरी तरह शरीयत पाबंद बनाना। अपने पूर्वजों के रीति रिवाजों से घृणा करना। दूसरे मुसलमानों को भी वही प्रेरणा देना।


हिंदुस्तान पर कब्जे की है साजिश


तब्लीगी एजेंडे को महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन के सक्रिय समर्थन से ताकत मिली। ऐसा इसके पहले कभी नहीं हुआ। मुमताज अहमद के अनुसार मौलाना इलियास को खिलाफत आंदोलन का बड़ा लाभ मिला। इससे उपजे आवेश का लाभ उठाकर उन्होने सही इस्लाम औऱ आम मुसलमानों के बीच दूरी पाटने और उन्हें हिंदू समाज से अलग करने में आसानी हुई। खिलाफत के बाद जमात का काम इतनी तेजी से बढ़ा कि जमाते उलेमा ने 1926 में बैठक कर तब्लीग को स्वतंत्र रुप में चलाने का फैसला किया। इस तरह तब्लीगी जमात बनी। मौलाना वहीदुद्दीन के अनुसार आर्य समाज के शुद्धि प्रयासों से नई समस्याएं पैदा हुईं जो मुसलमानों को अपने पूराने धर्म में वापस ला रहा था। यही स्वामी श्रद्धानंद पर जमात के कोप के कारण का भी संकेत है। स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के बाद तब्लीगी जमात पहली बार प्रमुखता से 1997 में सामने आई।

इलियास के बाद उसके बेटे मुहम्मद यूसुफ ने पूरे भारत और विदेश की यात्राएं की। इसके असर से अरब और अन्य देशों में तब्लीगी मुसलमान निजामुद्दीन आने लगे। इस पर हैरानी नहीं कि हाल में उसके मरकज यानी मुख्यालय से मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों के कई मौलाना मिले। मौलाना यूसुफ ने अपनी मौत से तीन दिन पहले रावलपिंडी में 1965 में कहा था, उम्मत की स्थापना अपने परिवार, दल, राष्ट्र , देश , भाषा आदि की महान कुर्बानियां देकर ही हुई थी। याद रखो, मेरा देश, मेरा क्षेत्र, मेरे लोग आदि चीजें एकता तोड़ने की ओर जाती हैं। इन सबको अल्लाह सबसे ज्यादा नामंजूर करता है। राष्टर और अन्य समूहों के ऊपर इस्लाम की सामूहिकता सर्वोच्च रहनी चाहिए।


धर्म के प्रचारक नहीं जासूसों की फौज हैं जमाती


कुछ लोग तब्लीगी जमात के गैर राजनीतिक रुप और राजनीतिक इस्लाम में अंतर करते हैं पर यह नहीं परखते कि प्रचार किस चीज का हो रहा है। शांतिपूर्ण प्रचार और जिहाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसे जगह , समय और काफिरों की तुलनात्मक स्थिति देखकर तय किया जाता है। जमात के काम शांतिपूर्ण है , मगर यह शांति माकूल वक्त के इंतजार के लिए है क्योंकि उनके पास उतनी ताकत नहीं है।

प्रोफेसर बारबरा मेटकाफ के अमुसार , जमात का माडल आरंभिक इस्लाम है। उसके प्रमुख की अमीर अपाधि भी इसका संकेत है जो सैनिक राजनीतिक कमांडर होता था। उनकी टोलियों की यात्रा कोई शिक्षक दल नहीं बल्कि गश्ती दस्ते जैसी होती है ताकि किसी इलाके की निगरानी कर उसके हिसाब से रणनीति बनाई जा सके।

यह संयोग नहीं कि 1992-93 में भारत , पाक, बांग्लादेश में कई मंदिरों पर हमले में तब्लीगी जमात का नाम उभरा था। न्यूयार्क में आतंकी हमले के बाद तो वैश्विक अध्ययनों में भी उसका नाम बार बार आया। अमेरिका के अलावा मोरक्को, फ्रांस, फिलीपींस, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान में सरकारी एजेंसियों ने जिहादियों और तब्लीगियों में गहरे संबंध पाए थे।

तब्लीगी जमात की सफलता में उसकी एकनिष्ठता का बड़ा हाथ है। वे पदों कुर्सियों के फेर में नहीं रहे। वे हिंदू नेताओं, बौद्धइकों के अज्ञान का भी चुपचाप दोहन करते हैं। इसलीलिए उनका अंतरराष्ट्रीय केंद्र राजधानी दिल्ली के एक पुलिस स्टेशन के पास होने पर भी बेखटके चलता रहा।

जमात की असलियत कांग्रेस ने छिपाई - बीजेपी समझ ही नहीं पाई


वस्तुत हमारी पार्टियों ने राष्ट्रवादी मुसलमान कह कर जिन्हें महिमामंडित किया वे अधिकांश पक्के इस्लामी थए। मौलाना मौदूदी, मशरिकी, इलियास, अब्दुल बारी आदि। उनके द्वारा मुस्लिम लीग के विरोध के पीछे ताकत बढ़ाकर पूरे भारत पर कब्जे की मंशा थी। इसी को कांग्रेसियों ने देशभक्ति कहा। वही परंपरा भाजपा ने भी अपना ली। इस प्रकार हमारे दल विविध इस्लानी नेताओं , संस्थानों , संगठनों आदि को सम्मान, अनुदान, संरक्षण तो देते रहते हैं पर उनके काम का आंकलन कभी नहीं करते । फल स्वरुप दोहरी नैतिकता और छद्म के उपयोग से पूरा देश गाफिल रहता है। इसीलिए भारत में तबल्गी जमात का काम अतिरिक्त सुविधा से चलता रहता है।



जमातियों का जाहिल दिमाग


वो दिन भी आएगा जब लॉकडाउन खत्म होगा। देश दुनिया वापस पटरी पर लौटेगी। भारत में भी जनजीवन सामान्य हो रहा होगा। उस समय मुस्लिम समाज के प्रति आम हिन्दुस्तानी के मन में एक गहरी खाई बन चुकी होगी। तब्लीगी जमात बीते सौ सालों से जिस विचार के साथ हिंदुस्तान में काम कर रही थी उसकी कलई कोरोना संक्रमण के इस दौर में खुल गई। जमात के लोगों ने ना सिर्फ कोरोना वायरस के संक्रमण को छिपाया बल्कि देश भर में फैलाया। ये बात जोर देकर इसलिए भी कही जा सकती है क्योंकि संक्रमित लोगों ने अस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों के साथ बेहद जाहिलाना और शर्मनाक हरकतें की। वो आइसोलेशन वार्ड से भागे। देश के अलग अलग हिस्सों में मौलाना थूक और पेशाब से अपना चेहरा और हाथ सेनेटाइज करने की सलाह देते रहे। सिर्फ इतना ही नहीं लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में समुदाय विशेष के एक वरिष्ठ डाक्टर ने जिस तरह कोरोना संक्रमित मरीज को दबाव डालकर ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया वो ये बताने के लिए काफी है कि ये कौम एक गहरी साजिश के तहत काम कर रही है।


इस साजिश में पढ़े लिखे और अनपढ़ अपनी अपनी काबिलियत के हिसाब से अपना अपना काम अंजाम दे रहे हैं। लखनऊ के इस डाक्टर का संबंध गोरखपुर के डाक्टर कफील से भी है। वही डाक्टर कफील जो गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कालेज में कई मासूमों की मौत का जिम्मेदार है और सीएए के प्रदर्शनों में शामिल था।

सिर्फ एक ही रास्ता - घर वापसी


सिर्फ तबलीगी नहीं पूरे मुस्लिम समाज की कलई हिंदुस्तान में कोरोना ने खोल दी है। अब अविश्वास की ये खाई पटेगी नहीं बल्कि जो इसे छद्म सेक्युलरवाद के नाम पर पाटने की कोशिश भी करेगा वो भी द्रोही ही समझा जाएगा। इसलिए मुसलमानों को पक्का मुसलमान बनाने के लिए जिस तबलीगी जमात की स्थापना की गई जरुरी है कि उस मकसद को खुद मुसलमान ही सिरे से त्याग दें।


हर हिंदुस्तानी ये मानता और जानता है कि भारत में रहने वाले मुस्लिमों के पूर्वज हिंदू थे। मुगलों के अत्याचार से धर्म परिवर्तित कर मुस्लिम बने हिंदू ब्रिटिश काल में वापस अपने सत्य सनातनी धर्म को अपना रहे थे। सौ साल बाद आज भी देर नहीं हुई। आज हिंदुस्तान में जमतातियों की हरकत का प्रायश्चित करने का मुस्लिम समाज के सामने सिर्फ एक ही रास्ता है – घर वापसी – अपने सत्य सनातनी धर्म में घर वापसी।



टीम स्टेट टुडे

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