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भारत को बांट कर इस्लामी स्टेट की मांग करेगें जावेद अख्तर, मुनव्वर राणा जैसे शायर!



भारत के मुस्लिम शायर, गीतकार, कलाकार जो इस समय जिंदा हैं या अब इस दुनिया में नहीं हैं वो सभी अपनी मीठी जुबान से शब्दों की चाशनी में हमेशा से जेहाद और इस्लामी स्टेट का एजेंडा छिपा कर बहुसंख्यक हिंदू आबादी को गुमराह करते आए हैं।


भारत में रहने वाले सभी मुस्लिम कलाकार, गीतकार, शायर और अन्य प्रोफेशनल्स ऐसे मुस्लिम अलतकैया गिरोह के सदस्य हैं जो बहुसंख्यक आबादी के बीच रह कर उनके दिलो-दिमाग पर अपनी छाप छोड़ते हैं और मौका आते ही भारत हिंदुओ के खिलाफ मुस्लिमों को लामबंद करते हैं।


इसका सबसे ताजा उदाहरण लखनऊ में रहने वाला मुनव्वर राणा नाम का शायर और मुंबई में रहने वाला जावेद अख्तर नाम का शायर,गीतकार है। इनके कारनामे आपको बताएं उससे पहले ये जान लीजिए कि ये सभी भारत के दो टुकड़े करवाने वाले अल्लामा इकबाल के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।


कौन है अल्लामा इकबाल


15 अगस्त और 26 जनवरी को आप बड़े फक्र से सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा गाते हैं। इस तराने को 1905 में अल्लामा इकबाल ने लिखा था। वही अल्लामा इकबाल जिसने सबसे पहले भारत के दो टुकड़े कर इस्लामी स्टेट पाकिस्तान की मांग की और अपने मकसद को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जिन्ना को आगे किया।


भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इकबाल ने ही उठाया था। इकबाल "पंजाब, उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बनाने की अपील करने वाला पहला मुसलमान था। इंडियन मुस्लिम लीग के 21 वें सत्र में, उसके अध्यक्षीय संबोधन में इस बात का उल्लेख था जो 29 दिसंबर, 1930 को इलाहाबाद में आयोजित की गई थी।


इकबाल ने ही जिन्ना को मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इकबाल को पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है। इकबाल को अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है।


1905 में तराना-ए-हिंद लिख कर रची थी साजिश


अल्लामा इकबाल एक ऐसा कनवर्टेड मुसलमान था जिसने अपनी जेहादी सोच को मुकम्मल करने के लिए 1905 में 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा गीत लिखा। ये गीत प्रसिद्ध हुआ और हिंदू आबादी के बीच मुसलमान भी भारत से प्यार करते हैं ऐसा मतिभ्रम पैदा हुआ ठीक तब अल्लामा इकबाल ने अपनी जेहादी सोच से पूरे भारत में मुसलमानों को अलग मुस्लिम देश के लिए हुसका दिया।


जब साजिश का हुआ पर्दाफाश


इसके बाद इकबाल ने मुस्लिमों को संदेश देने के लिए 1910 में एक और गीत तराना ए मिल्ली लिखा। जिसके बोल थे चीन ओ अरब हमारा हिन्दोंस्तां हमारा, मुस्लिम है वतन है , सारा जहां हमारा। इस तराना ए मिल्ली के जरिए इकबाल ने मुस्लिम उम्माह यानी इस्लामिक राष्ट्रों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि इस्लाम में राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं किया गया है। इकबाल ने अपने इस गीत से दुनिया में कहीं भी रह रहे सभी मुसलमानों को एक ही राष्ट्र के हिस्से के रुप में मान्यता दी जिसके नेता मुहम्मद हैं जो मुलमानों के पैगंबर है। यानी इस गीत से इकबाल ने जो मुसलमान दुनिया के जिस हिस्से में है उससे वहीं इस्लामी मुल्क बनाने का संदेश दे दिया।

इकबाल का दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित था जो बाद में सिआलकोट आ गया था।


1938 में इकबाल की मौत हो गई बावजूद इसके जब 1947 में भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान बना तो वहां जिन्ना ने इकबाल के प्रभाव बेहद "महत्वपूर्ण", "शक्तिशाली" और यहां तक ​​कि "निर्विवाद" के रूप में वर्णित किया। इकबाल ने जिन्ना को लंदन में अपने आत्म निर्वासन को समाप्त करने और भारत की राजनीति में फिर से प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया था। अकबर एस अहमद के अनुसार, अंतिम वर्षों में मृत्यु से पहले, इकबाल धीरे-धीरे जिन्ना को अपने विचार अनुसार परिवर्तित करने में सफल रहे। जिन्होंने अंततः इकबाल को उनके "मार्गदर्शक " के रूप में स्वीकार कर लिया।


अब हैरानी की बात ये है कि 1947 में भारत की आजादी के बाद भी इकबाल के नाम को ना सिर्फ हिंदुस्तान में बड़ी तबज्जो दी गई बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों में पार्क, लाइब्रेरी और तमाम सार्वजनिक स्थलों का नामकरण इकबाल के नाम पर हुआ। भोपाल के अलावा यूपी की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एक हास्टल इकबाल के नाम पर है। उधर पश्चिम बंगाल में तो बाकयदा इकबाल के नाम पर सालाना जलसा होता है।


भारत के नए इकबाल


इकबाल की ही तर्ज पर भारत में रहने वाले मुनव्वर राणा, जावेद अख्तर , नसीरुद्दीन शाह, नुसरत जहां, आमिर खान, शाहरुख खान, सलमान खान, सैफ अली खान और तमाम नामचीन मुस्लिम कलाकार इसी तरह की जेहादी सोच का एजेंडा बढ़ाने में लगे हैं।


कानून का दुश्मन मुनव्वर का परिवार


लखनऊ में रहने वाला मूल रुप से रायबरेली का बाशिंदा मुनव्वर राणा अपनी शेरो-शायरी के चलते लोकप्रिय हुआ इसके बाद सीएए-एनआरसी का बिल आते ही पूरे परिवार के साथ धरना प्रदर्शन में शामिल हो गया। राणा की बेटियां तो लखनऊ में आंदोलन की अगुवाई कर रहीं थी। राणा का लड़का क्रिमिनल है जिसने जमीन जायदाद के लिए अपने खानदानियों पर ही फायर झोंक दिया। हालही में मुनव्वर राणा ने वाल्मीकि समाज पर गंभीर टिप्पणी की। मामला दर्ज होने के बाद जब गिरफ्तारी की नौबत आई तो बीमारी का बहाना बनाकर पीजीआई पहुंच गया। आपको बताते चलें कि मुनव्वर ने अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने पर बेहद खुशी जाहिर की है।


राणा अस्पताल पहुंचा तो राज्यसभा का सांसद रह चुका जावेद अख्तर मोर्चे पर आ गया। उसने ना सिर्फ तालिबान के कसीदे गढ़े बल्कि भारत की हिंदू जनता से जुड़े प्रमुख सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों पर गंभीर टिप्पणियां कर दीं।


खतरनाक इरादों वाला जावेद अख्तर


नाराज हिंदू समाज ने जब जावेद अख्तर के खिलाफ प्रदर्शन किए तो उनकी तुलना तालिबान से कर दी। यानी चित भी मेरी पट भी मेरी। आपको बताते चलें कि जावेद अख्तर की जेहादी सोच के चलते मुंबई में इसे किराए का घर तक देने को कोई तैयार नहीं था। अख्तर की बीबी शबाना आजमी जेहादी सोच रखने वाले शायर कैफी आजमी की बेटी है। जिसका ताल्लुक उत्तर प्रदेश के सबसे आतंकी गतिविधियों के लिए अति संवेदनशील जिले आजमगढ़ से है। जावेद अख्तर का बेटा फरहान और बेटी जोया भी उसी नक्शेकदम पर हैं। दोनों ने फिल्में बनाकर और फिल्मों में अभियन के जरिए हिंदू आबादी के बीच लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास किया है।


क्या सोचता है हिंदू समाज


ज्यादातर हिंदू समाज के बीच राणा, अख्तर, आमिर जैसे लोगों ने अपनी उदार छवि बनाई हुई है। कभी शेरो-शायरी तो कभी अभिनय और अन्य माध्यमों के जरिए इन्होंने खुद को बेहद पढ़ा लिखा या समझदार नागरिक दिखाने की कोशिश की है। काफी हद तक ये इसमें सफल भी रहे हैं। जिसकी आड़ में इनकी फितरत बीते वर्षों में धीरे धीरे सामने आई है।


अफगानिस्तान में तालिबानियों के आतंक को छोड़िए , कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी पंडितों को भी छो़ड़िए अभी हाल में पश्चिम बंगाल में जिस तरह हिंदुुओं के नरसंहार और पलायन की स्थिति बनी उस पर एक शब्द इन लोगों ने नहीं बोला।


जैसे जैसे बॉलीवुड की जेहादी सोच और हिंदू संस्कृति को तहस-नहस करने के राज फाश हो रहे हैं लोग इनसे किनारा करने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। मुस्लिम समाज में ऐसे लोगों को अलतकैया कहते हैं। जो छद्म रुप से अलग अलग पेशों के जरिए इस्लामी हुकूमत का मकसद साधते हैं।


टीम स्टेट टुडे


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