लखनऊ, 27 मार्च 2023 : “मानव सेवा” के लिए अनेक अवसर अनायास ही उपलब्ध होते रहते हैं। इसके लिए साधन, मार्गदर्शन और सफलता प्रभु की दया से अनायास ही सुलभ होती है। यही मनुष्य जीवन का “लाहा” है।
यह कहना है पूज्य देवेंद्र मोहन भैया जी का, जो संत कृपाल आश्रम मणीनाथ, बरेली में सत्संग करने पहुंचे थे। भैया जी ने अपने गुरु स्वामी दिव्यानंद महाराज को याद करते हुए कहा की परम पूज्य महाराज जी कहा करते थे कि मानव सेवा प्रभु भक्ति है। यह कोई नई बात नहीं है। गुरुवाणी में “करम होय सतगुरु मिलाए, सेवा सुख शबद चित्त लाए” कहकर निष्काम सेवा को प्रभु प्राप्ति का साधन बताया गया है। भगवान कृष्ण ने गीता में अच्छे और बुरे दोनों कर्मों को त्याज्य कहकर निष्काम कर्म को मुक्ति का साधन बताया है। नर तनरुपी हरी मंदिर में विराजमान प्रभु की सेवा से उत्तम कोई अन्य सेवा धर्म को भी कैसे सकता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में नर सेवा नारायण सेवा का उद्घोष किया गया है।
भैया जी ने कहा की पूज्य स्वामी दिव्यानंद जी महाराज कहा करते थे कि मानव सेवा मेरा धर्म और कर्म है। इसी शाश्वत भारतीय दर्शन का रूप है जो सत्य और वंदनीय है। सत्संग सभा को संबोधित करते हुए देवेंद्र मोहन भैया जी ने कहा कि नफरत फैलाने वाले परमात्मा की भक्ति नहीं पा सकते। हमारा उद्देश्य है कि लोग मानव सेवा और सांप्रदायिक सौहार्द का मतलब समझे और आपस में भाईचारे का संबंध स्थापित करें।
भैया जी ने कहा कि सत्य सनातन धर्म को ही मानव धर्म का आधार बताते हुए कृपाल सिंह जी महाराज हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन आदि सभी धर्मों और पंथों के प्रति अध्यात्म और भक्ति के मार्ग से समान भाव रखते थे। मानव कल्याण के लिए वसुधैव कुटुंबकम् के मंत्र को आधार बनाकर महाराज जी ने सभी धर्मों और मठों के धर्म गुरुओं से मिलकर विश्व शांति का अनोखा संदेश दिया। भैया जी ने संत कृपाल सिंह जी महाराज के प्रचलित कथन को याद करते हुए कहा कि
“परमात्मा का पाना आसान है,
इंसान का बनना मुश्किल है।”
“जब दिल का शीशा साफ़ होता है,
तो प्रभु का दर्शन आप होता है।”
देवेंद्र मोहन भैया जी ने संगत से कहा कि मनुष्य अपने चरित्र और जीवन में संयम और विकास तभी ला सकता है जब समय रहते अपने भीतर की कमियों को दूर किया जाए। संत कृपाल सिंह जी महाराज को आध्यात्मिकता का संदेश वाहक गुरु माना जाता है और वो ध्यान एवं साधना पर बहुत ज़ोर दिया करते थे।
भैया जी ने कहा कि भारतवर्ष संत महात्माओं की धरती है। प्राचीनकाल से ही गुरु शिष्य की परंपरा का निर्वहन होता आया है। संत कृपाल सिंह जी महाराज के सेवाकार्यों और उद्देश्यों को लेकर उनके गुरु स्वामी दिव्यानंद जी महाराज जीवन पर्यंत आगे बढ़ते रहे। जब स्वामी दिव्यानंद जी महाराज के उत्तराधिकारी के रुप में वो भी ना सिर्फ अपने गुरु की शिक्षाओं और सेवाकार्यों से मानवता और समाज के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है बल्कि उनके साथ जुड़ी हुई समस्त संगत भी मानव सेवा को ही प्रभु भक्ति मान कर आगे बढ़ रही है।
देवेंद्र मोहन भैया जी ने कहा कि भारतवर्ष का सत्य सनातन धर्म मानव कल्याण के लिए सारी पृथ्वी को ही अपना परिवार मानता है। सत्संग के उपरांत भंडारे का आयोजन हुआ। सत्संग को सफल बनाने में गेंदन लाल बाबूजी, आर पी गंगवार, प्रीतम लाल, भगवान दीन, डॉक्टर नोनीराम, महेश, मुनीश भाई लंगर और स्थानीय संगत का बड़ा योगदान रहा।
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