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हमारा देश एवं आज का विश्व


ओम प्रकाश मिश्र


हमारे देश में अत्यन्त महत्वपूर्ण अमृतकाल के आरम्भ में ही समस्त विश्व में भारत का मस्तक तेजवान दर्शित हो रहा हैं। भारत परतंत्रता की बेड़ियों को काटकर हजार वर्ष के शोषण-उत्पीड़न को हटाकर स्वाधीनता का आनन्द प्राप्त करके आज अमृतकाल में है, और वह भी एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। महाकवि कालीदास के ग्रन्थ ’कुमार संभव’ के प्रथम श्लोक में भारतवर्ष की सीमाओं का उल्लेख मिलता है।

’’अस्त्य उत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयों नाम नगाधिराजः।

पूर्वा परौ तोयनिधि विगाह्य स्थितः पृथ्व्या इव मानदण्डः।।

अर्थात उत्तर दिशा में हिमालय नाम के पर्वतराज हैं। पूर्व और पश्चिम में स्थित दोनों समुद्रों को प्रविष्ट कर, मानो पृथ्वी के नापने का पैमाना है, यानी गहराई को नाप रहा हैं

आदि कवि कालिदास ने रामायण में लिखा है ’’ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’

यानी माता व मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है। हमारें देश में जन्मभूमि का अर्थ कोई जिला, मुहल्ला या गाँव नहीं है। वरन् समस्त राष्ट्र के विस्तार, पर्वतराज हिमालय से हिन्द महासागर पर्यन्त हैं। इस राष्ट्र की अनेक जीवनदायिनी नदियों, असंख्य पशु-पक्षी, भाँति-भाँति की वन सम्पदायें, अकूत प्राकृतिक संसाधन व विश्व की सबसे बड़ी मानव संसाधन का आधार भी हैं।

विश्व के बहुत सारे देश, आज जो हैं, वे युद्धों के परिणाम स्वरूप, विभाजनों के फलस्वरूप बने हैं। भारत जैसा राष्ट्र तत्व का भाव कम देशों में ही हैं।

हमने उन मनीषियों को भातृभाव का संदेश दिया हैं। अथर्ववेद के ’पृथ्वीसूक्त’ में माता-भूमिः पुत्रोडहं पृथिव्याः।। अर्थात् भूमि माता है, मैं उसका पुत्र हूँ की रचना की, उसी दिन और उसी क्षण भारत की देवभूमि पर एक राष्ट्र ने रूपाकार ग्रहण किया। हमारी मातृभूमि की सुगंध विशिष्ट प्रकार की है।

पृथ्वी से उत्पन्न इस गन्ध की राष्ट्रीय विशेषता है। भारतीय संस्कृति का भाव ’’वसुधैव कुटुम्बकम्’’ है। यानी सारा विश्व एक परिवार है। यह ऐसा दृष्टिकोण है, जो हमें सार्वभौमिक परिवार के रूप में विचार के लिए प्रेरित करता हैं इसमें भाषा, विचारधारा, क्षेत्र, विभाजन के बिन्दुओं के भी सामंजस्य की कोशिश निरन्तर रहती है। हमारी विचार सरणि पूरे समाज, मानवजाति, सभी अंगों प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करने की रही है। यही हमारी चेतना का मूल है।

आज का विश्व निश्चिततः चुनौतियों व समस्याओं से भरा हुआ है। हाल के वर्षो में कोरोना जैसी महामारी ने मानव जाति के लिए संकट उत्पन्न किया था। इस महामारी से लड़ने में हमारे देश ने, स्वदेशी निर्मित वैक्सीन से न केवल देश में लगभव 200 करोड़ टीके मुफ्त में लगवायें, वरन् अन्य अनेक देशों को भी वैक्सीन की आपूर्ति की। इससे भारत की प्रतिष्ठा, विश्व में बढ़ी है।

आज हमारा देश, विश्व के स्वास्थ्य के ढ़ाँचे में आपदारोधी तौर तरीकों में, विश्व का सहयोग कर रहा हैं। भविष्य की चुनौतियों से निपटने कि लिए फार्मास्युटिकल क्षेत्र में गुणवत्ता सम्पन्न टीकों, चिकित्सा और निदान तक में हमारा सहायता कर रहा हैं। भारत ने वित्तीय वर्ष 2022 में 200 देशों को 24.47 बिलियन डॉलर के फार्मा उत्पादों की आपूर्ति की है। सारे संसार ने जीवन रक्षक टीको की आपूर्ति करने में भारत के सहयोग की प्रशंसा की है। हमें याद है कि कोरोना काल में भारत ने 100 से ज्यादा देशों को कोविड की वैक्सीन दी थी। आज हमारा देश, अनेक निम्न व मध्यम आय वाले देशों की सस्ती दर पर एन्टी टी0बी0, व एच0आई0वी0 की जेनरिक दवाओ की आपूर्ति करता हैं। निश्चित तौर पर विश्व के मानचित्र पर भारत राष्ट्र की भूमिका, आज महत्वपूर्ण है।

भारत के चन्द्रयान के कामयाबी की छलांग, भारत को एक नई ऊँचाई पर ले गया। जहाँ दूसरे देश, एक बार भी चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग नहीं कर सकें थे, हमारे लैंडर विक्रम ने 30-40 सेंटीमीटर उछलकर, 30-40 सेंटीमीटर दूर एक बार फिर चाँद पर साफ्ट लैडिंग किया। लैंडर विक्रम और रोवर ’’प्रज्ञान’’ की सफलता ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) का स्तर सारे संसार में चमका दिया है। यह मिशन बहुत से उद्देश्यों को समेटे हुये है, यह सौरमंडल कैसे बना, इस बात की संभावनाओं को तलाशेगा। चन्द्रमा पर जीवन की संभावनाओं को तलाशने में सहायक होगा।

हमारे अत्यन्त महत्वपूर्ण मिशन, आदित्य एल-एक का उद्देश्य सूर्य के वातावरण का अध्ययन करना है। आदित्य एल-एक में 7 अलग-अलग कैमरे लगाये गये हैं, जो सूर्य के अध्ययन करके, कई रहस्यों पर से पर्दा उठने की आशा है। यह एक नये युग का आरम्भ है, जब चन्द्रयान मिशन और आदित्य-एल-एक से भारत उन देशों में अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा जो अन्तरिक्ष विज्ञान में उन्नत हैं।

एक पृथ्वी एक परिवार एक भविष्य की संकल्पना से ओतप्रोत भारत ने जी-20 की अध्यक्षता की। समस्त विश्व के कल्याण व मंगल का, भारतीय मार्ग मजबूत, सक्षम, समर्थ बनाने का है। दो सौ से अधिक स्थानों पर जन भागीदारी के इस अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम ने भारत की प्रतिष्ठा में चार-चाँद लगा दिएं आज विश्व के अल्पविकसित एवं विकासशील देश, भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहे है। संयुक्त राष्ट्र एवं शंघाई सहयोग संगठन के उपरान्त 1 दिसम्बर 2022 से नवम्बर 2023 तक भारत की अध्यक्षता का कार्यकाल, विश्व में अप्रतिम है।

देश के अनेक राज्यों के विभिन्न स्थानों पर अनेकों विषयों पर बैठके व कार्यक्रम आयोजित किए गये। फिर नई दिल्ली के नवनिर्मित ’’भारत मण्डपम्’’ में 9 तथा 10 सितम्बर 2023 को जी-20 की बैठक में सभी महत्वपूर्ण देशों के राष्ट्राध्यक्षों की महत्वपूर्ण उपस्थिति हुई।

जी-20 ऐसे देशों का समूह है, जिनका विश्व समग्र घरेलू उत्पाद (जी0डी0पी0) कर 85 प्रतिशत एवं विश्व व्यापार का 75 प्रतिशत इनके माध्यम से होता है। इस समूह से विश्व की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या रहती है।

हमारा मन्त्र

’’सर्वे भवन्तु सखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःख भाग भवेत्’’ रहा है। भारत ने उपचार सद्भाव और आशा के रूप में रखकर, वैश्वीकरण को अधिक मानव केन्द्रित करने का विजन रखा है। यह शुद्ध मानवीय दृष्टि की भारतीय परिकल्पना, समस्त विश्व के कल्याण का भाव लिए हुये है।

जी0-20 की भारत की अध्यक्षता के समय, मानव-केन्द्रित-विकास की अवधारणा को बल मिला है। मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए, विभिन्न देशों के परस्पर सहयोग का भाव जागृत हुआ है। अब सोच ऐसी विकसित हो रही है कि, समग्र घरेलू उत्पादन पर विकसित अर्थव्यवस्थाओं के स्थान पर, मानव-केन्द्रित विकास पर जोर दिया जा रहा है। वस्तुतः, वैश्विक संस्थानों में सुधार हेतु बहुपक्षवाद हेतु बढ़ावा मिल रहा है।

वस्तुतः विकासशील, ग्लोबल साउथ और अफ्रीकी देशों की हाशिये पर पड़ी आकांक्षाओं के लिए, जी.-20 में, भारत की अध्यक्षता में महत्वपूर्ण मुकाम आया। पचपन देशों वाले अफ्रीकी संघ को जी.-20 में शामिल करने का प्रयास भी, भारत के आर्थिक विकास को नया आयाम दे सकते हैं। अफ्रीकी देशों की आबादी एक अरब से ज्यादा है और अर्थव्यवस्था का आकार एक ट्रिलियन डॉलर का है। भारत ने अफ्रीकी संघ को इस समूह का सदस्य बनाने में भारत को जो सफलता मिली, उससे भारत का सम्मान बढ़ा है। भारत जी0-20 को जी0-21 का रूप देने में समर्थ हुआ। भारत ने ग्लोबल साउथ यानी एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के विकासशील देशों के हितों का ध्यान रखने का मुद्दा उठाकर यह साफ कर दिया कि वह वैश्विक व्यवस्था में सभी देशों के हितों के प्रति सचेत है।

डिजिटल भुगतान के विषय में, भारत ने समस्त विश्व का ध्यान आकृष्ट किया है। आज भारत में जिस बड़े पैमाने पर डिजिटल लेन देन हो रहा है, उससे विकसित देश भी आश्चर्य चकित हो रहे है। भारत ने सारी दुनिया को यह दिखा दिया है कि किस प्रकार से तकनीक का प्रयोग करके, आर्थिक असमानता को कम करने में सहायता मिल सकती है। हमारे डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (डी0पी0आई0) के माध्यम से करके, जो परिणाम भारत ने प्राप्त किए है, उसे पूरा संसार देख रहा है। ऐसी आशा है कि जी0-20 के आयोजनोंपरान्त विकासशील देशों की डी0पी0आई0 ज्यादा से ज्यादा अपनायेंगें जिससे विकास समावेशी होगा।

भारत से पश्चिम एशिया के मार्ग से, यूरोप तक बनाये जाने का आर्थिक गलियारा, इतना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले वर्षों में लगभग 40 प्रतिशत बढ़ावा व्यापार को मिलेगा। यह मार्ग लाल सागर, स्वेजनहर और भूमध्य सागर के रास्ते से होगां निश्चित तौर पर, यह चीन की प्रोजेक्ट को चुनौती देगा। यूरोप के देशों के लिए अब भारत से कुशल व अर्द्धकुशल श्रमशक्ति की उपलब्ध दोनो पक्षों के लिए लाभकारी होगा।

जी0-20 के सम्मेलन से भारत की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, क्योंकि भारत का बाजार, विश्व के अन्य देशों के बाजार से जुड़ने का अधिक अवसर मिलेगा। भारत इससे, आने वाले वर्षो में, इंजीनियरिंग, विमानन, स्टील, सीमेन्ट, आटोमोबाइल, फार्मा क्षेत्र, आभूषण व रत्न, आदि उद्योगो को बढ़ावा मिलेगा। चीन की बेल्ट एन्ड रोड इनिशिएटिव परियोजना के लिए एक विकल्प व चुनौती के रूप में सामने आयेगी।

भारत-यूरोप आर्थिक गलियारा, इस क्षेत्र ही नहीं वरन् सभी सम्बन्धित देशों के लिए आप्टिकल फाइबर, रेलवे उद्योग, हाइड्रोजन पाइपलाइन आदि क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के लिए, अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा। आज संसार की अत्यन्त जटिल भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को साधने में भारत की भूमिका अधिक सफल होने की संभावना बढे़गी। निश्चिततः विश्व समुदाय में इससे, भारत की प्रतिष्ठा बढे़गी।

वर्तमान काल में खाद्य व पोषण सुनिश्चित करने के लिए मोटे अनाजों ’’श्री अन्न’’ से बहुत सहायता मिल सकती है। मोटे अनाजों के लिए भारत के प्रस्ताव पर वर्ष 2023 को ’’इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’’ घोषित किया गया था। मोटे अनाजों में मुख्यतः बाजरा, रागी, ज्वर, कोदो, साँवा, कुटकी, आदि शामिल है। इनमें पोषण के लिए आवश्यक आयरन , फाइबर, कैल्शियम आदि अनेक तत्व उपलब्ध होते हैं। हाल में ही सम्पन्न जी0-20 के शिखर सम्मेलन में, विदेशी मेहमानों को मोटे अनाजों खासकर रागी, बाजरा और ज्वार आदि के व्यंजन परोसे गये थे। मोटे अनाजों की खेती ज्यादातर छोटी जोत वाले कृषक करते हैं। मोटे अनाजों की खेती करने के लिए गेहूँ, धान आदि की तुलना में सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है। इसके अतिरिक्त मौसम में परिवर्तन का भी कम असर पडता है।

इस प्रकार से कृषि करने से फसल-चक्र की भी योजना बना कर आर्थिक लाभ भी कृषक वर्ग उठा सकता है। विश्वस्तर पर मोटे अनाज मान्यता से भारत व विकासशील देशों को अर्थिक लाभ होगा।

हाल में ही अफ्रीकी देश लीबिया, में जो आपदा आई और उससे जो बड़ी जनहानि हुई, उसने जलवायु-परिवर्तन की तीव्रता से मानव-समाज के समक्ष संकट को उजागर किया है। ऐसी आपदाओं के संभावित जोखिम से निपटने के लिए भी भारत ने विकसित देशों से सहायता करने का उल्लेख जी0-20 की बैठक के दौरान किया था। इस हेतु विकासशील देशों की सहायता हेतु कोष का आकार भी बढ़ाने का प्रस्ताव हुआ।

आज विश्व के समक्ष भारत में हो रहें आर्थिक क्षेत्र तथा सामाजिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों की ध्वनि जोरदार तरीके से आ रही है। भारत में जो प्रभाव डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का दिख रहा है, यहाँ के डिजिटल भुगतान एवं प्रत्यक्ष लाभ स्थानांतरण (डी0बी0टी0) से समाज के निचले स्तर के पायदान पर रहने वाले लोगो को लाभ मिल रहा हैं, वह विश्व के अनेक देशों को प्रेरणा दे सकता है। दिल्ली में सम्पन्न हुये, जी0-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन ने भारत की वैश्विक छवि को एक नया आयाम दिया है। भारत की कूटनीतिक दक्षता का परिणम यह है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहें युद्ध एवं चीन के अन्यन्त अड़ियल रूख के बावजूद जो आम सहमति बनी, वह लगभग असंभव सी थी। इस सम्मेलन के पूर्व यह कल्पना करना भी कठिन था कि घोषणापत्र पर आम सहमति बन सकेगी। रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में अमरीका और नाटों एवं रूस और चीन बढ़ते तनाव के माहौल में नाम लिए बिना भी ऐसे घोषणापत्र पर रूस और चीन की सहमति बनवाना किसी ऐतिहासिक उपलब्धि से कम नहीं है।

इसके अतिरिक्त जलवायु संकट से निपटने के लिए विश्व जैव-ईधन अलायंस बनाने जैसी पहल, आने वाले वर्षो में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण-सुरक्षा के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होगा, ऐसी आशा है।

सम्पूर्ण विश्व को सुखी भविष्य का रास्ता दिखलाते हुये भारत ने पृथ्वी के सभी प्राणियों को उदार, शांतिप्रिय एवं प्राणिमात्र के लिए अपने-पराये की संकीर्ण सीमा को लांघ कर, प्राणिमात्र में वैसुधैव कुटुम्बकम का भाव उत्पन्न करने का महती लक्ष्य रखा है। आज भारत की वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रगति, रक्षा एवं अंतरिक्ष विज्ञान की उपलब्धियाँ, भारतीय जीवन पद्धति, संस्कृति व परम्परा से विश्व समुदाय को परिचित करा रही हैं, विश्व भी इससे अपरिचित नहीं है।


×××



ओम प्रकाश मिश्र

पूर्व प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग,

इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं पूर्व रेल अधिकारी

66, इरवो संगम वाटिका, झलवा, देवप्रयागम

प्रयागराज, उ0प्र0 पिन-211015



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