के. विक्रम राव Twitter ID: @KvikramRao (वरिष्ठ पत्रकार) : इस्लामी द्वीप-गणराज्य मालदीव की विदेश मंत्री बैरिस्टर श्रीमती मारिया अहमद दीदी से कल (1 मई 2022) राजधानी माले में वार्ता करके रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इतना तो सुदृढ़ कर ही दिया कि चीन और पाकिस्तान का प्रभाव यहां कमजोर ही रहेगा। हिंद महासागर क्षेत्र का यह दक्षिण एशियाई राष्ट्र भारत से प्रगाढ़ मित्रता रखता है। मालदीव शत-प्रतिशत सुन्नी मुस्लिम राष्ट्र है। भारत के प्रिंट और टीवी मीडिया को इस कूटनीतिक घटना का उचित कवरेज करना चाहिए था। दो रक्षामंत्रियों की यह अहम भेंट है। सामरिक दृष्टि से और राजनीतिक भी। भारतीय मीडिया का दायित्व था उन अप्रिय घटनाओं का स्मरण करती जिनके कारण भारत-शत्रुओं ने विगत में मालदीव को छीन लेना चाहा था। गंभीर कोशिश की थी। यह हादसा 3 नवंबर 1988 का है जब व्यापारी अब्दुल्ला लतीफी ने इस द्वीप में तख्ता पलट करने की साजिश रची थी। उसे श्रीलंका के लिट्टे विद्रोहियों की मदद मिल रही थी। ऐन वक्त पर भारतीय सेना के जनरल के. रामचंद्र राव ने वायु तथा नौसेना की सहायता से षड्यंत्र को नाकाम कर दिया। राजीव गांधी का आदेश मिल गया था। वर्ना राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल गयूम कैद हो जाते। मालदीव तमिल विद्रोहियों के कब्जे में आ जाता।
राजनाथ सिंहजी राष्ट्रवादी जनतांत्रिक गठबंधन की पारंपरिक विदेश नीति के तहत ही मालदीव से मैत्री प्रगाढ़ कर रहे हैं। इसी संदर्भ में नवंबर 2018 की अद्भुद घटना का जिक्र हो। तब संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा के 76वें अधिवेश के अध्यक्ष पद पर मालद्वीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला राशिद की विजय सुनिश्चित कर भारत ने कूटनीतिक सफलता पाई थी। न्यूयार्क में संपन्न इस मतदान मे तीन चौथाई वोट हासिल कर, अब्दुल्ला राशिद ने पड़ोसी अफगानिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री जल्माई रसूल को हरा दिया था। देखने में "रसूल बनाम राशिद" यह चुनाव तो सामान्य सालाना घटना लगेगी, पर इसके मायने कूटनीतिक वर्तुलों में काफी गहरें थे। इस अध्यक्ष पद हेतु अफगानिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री (जल्मायी रसूल) और मालद्वीप के विदेश मंत्री (अब्दुल्ला शाहिद) के बीच सीधा मुकाबला था। एस. जयशंकर ने भारत का वोट मालद्वीप के पक्ष में देने की घोषणा कर दिया था। हालांकि ऐसे ऐलान करने का नियम नहीं है। मगर इसके कारण रहे। क्लेश इस बात का रहा कि इस महत्वपूर्ण भौगोलिक पहलू से जुड़ी खबर को तब यूपी के हिन्दी दैनिकों में पर्याप्त स्थान नहीं मिला था। कोई संपादकीय टिप्पणी भी नहीं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की मालदीव यात्रा का समय अत्यधिक महत्वपूर्ण है। चीन हमेशा हिंद महासागर को अपना प्रभाव क्षेत्र बनाने मे जुटा रहा। मकसद है कि श्रीलंका और बलूचिस्तानी समुद्री तटों से मालदीव तट के जुड़ जाने से भौगौलिक महत्व काफी बढ़ जाता है। राजनाथ सिंह की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों के कई पहलुओं की समीक्षा हुई। उन्होंने मालदीव राष्ट्रीय सुरक्षा बलों को एक फास्ट पेट्रोल वेसल जहाज और एक लैंडिंग क्राफ्ट उपहार दिया। गौरतलब है कि भारत और मालदीव समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद, कट्टरवाद, समुद्री डकैती, तस्करी, संगठित अपराध और प्राकृतिक आपदाओं सहित साझा चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। क्षेत्र की सुरक्षा और विकास की दृष्टि अपनी "पड़ोसी पहले" नीति के तहत कार्यक्रम कारगर होने हैं। मालदीव के साथ "भारत पहले" नीति के अंतर्गत हिंद महासागर क्षेत्र के भीतर क्षमताओं को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए मिलकर काम करने आवश्यकता है। अपनी त्रिदिवसीय मालदीव यात्रा से राजनाथ सिंह ने दक्षिण समुद्री तटीय सुरक्षा को अधिक मजबूत बनाया है। अब चीन और पाकिस्तान से इस सागरतटीय क्षेत्र में भारत द्वारा मुकाबला करना अधिक सशक्त होगा।
आम भारतीय को मालदीव की रक्षा मंत्री मारिया स्वयं भी एक दिलचस्प खबर हो सकती हैं। वे कर्नाटक में रहीं थीं। बेंगलुरु से भी शिक्षा पा चुकी हैं। गत वर्ष मारिया अहमद दीदी केरल के कन्नूर के भारतीय नौसेना अकादमी में अधिकारी कैडेटों की "पासिंग आउट परेड" में मुख्य अतिथि थीं। वह भारतीय नौसेना अकादमी में परेड की समीक्षा करने वाली पहली विदेश रक्षा मंत्री हैं। मालदीव की वे पहली महिला वकील बनीं, जिन्होंने युनिवर्सिटी ऑफ एबरिस्टविथ, ब्रिटेन, से अपनी स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की। महाधिवक्ता 1998 में बनीं। उनका मानना है कि उनकी पढ़ाई ने नींव रखी कि एक देश को कानूनों का राष्ट्र बनने और इसके साथ आने वाली सभी स्वतंत्रताओं का उपभोग करने के लिए, लोकतंत्र और कानून के राज को मजबूत करना, पोषण करना और फलने-फूलने का मौका देना है।
अपने एक भाषण में उन्होंने सितंबर 2003 को अपने जीवन में महत्वपूर्ण "मोड़" के रूप में वर्णित किया था। तब एक 19-वर्षीय लड़के की हिरासत में यातना के बाद मालदीव में मृत्यु हो गई। उन्होंने कहा कि अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया गया था। तब मारिया ने सरकार छोड़ दी और "यातना और हत्याओं को रोकने के लिए" अपना काम समर्पित करने का फैसला किया। उन्होंने कई विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया। उन्होंने कहा : “मुझे विरोध प्रदर्शनों में पीटा गया, गिरफ्तार किया गया, मुझ पर पेशाब और इंजन का काला तेल फेंका गया, सड़क से भगा दिया गया, इंटरनेट साइटों और प्रिंट मीडिया में बदनाम किया गया", आदि। पर वाह रे मारिया मैडम। संघर्ष करती रहीं। आज मंजिल उनके कदम चूम रहीं हैं।
लेखक श्री के.विक्रम राव वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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