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अपने ही शहर में अजनबी हुए अकबर इलाहाबादी

Updated: Sep 10, 2021



यूपी के अदबी शहर इलाहाबाद की शिनाख्त है उर्दू अदब के तंजोमिज़ाह के नामचीन शायर अकबर इलाहाबादी | अपनी शायरी से समाज को वक्त वक्त पर आगाह करने वाले इस शायर को उनके अपने ही शहर और अदब के लोग भूल गए | यह चुभन आज इसलिए भी सबसे ज्यादा होगी क्योंकि आज अकबर इलाहाबादी साहब की सौ वी पुण्यतिथि है | हिम्मतगंज में स्थित अकबर इलाहबादी की इस सुनसान मजार में आज न तो उर्दू अदब के ठेकदारो ने नज़रे इनायत की और न ही खुद को अकबर इलाहबादी के रिश्तेदार बताने वालों ने ही यहाँ अकबर को अकीदत के दो फूल पेश किए |



अकबर की इसी जिले की पैदाइश थी, वह 16 नवम्बर 1846 को इलाहबाद जिले के बारा कसबे में जन्मे थे | उनका असली नाम सय्यद अकबर हुसैन रिज़वी था | बुनियादी तालीम हासिल करने के बाद सय्यद हुसैन इलाहबाद शहर के इसी रानी मंडी मोहल्ले की इस इमारत में रहने लगे जिसका नाम उन्होंने इशरत मंजिल रखा था | यादगारे हुसैनी इन्टर कॉलेज कैंपस का जर्रा ज़र्रा अकबर इलाहबादी की मौजूदगी यहाँ दर्ज कराती है | आज भी इस कॉलेज का स्टाफ अकबर इलाहाबादी के नाम से जुड़कर फक्र महसूस करते है | इसी जगह पर उस आनंद भवन की बुनियाद भी पडी जो आजादी की लड़ाई का गवाह रहा और जिसके साथ इस शहर की अटूट पहचान बनी | देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू और अकबर इलाहाबादी की दोस्ती की दास्ताँ की भी गवाह है यह ख़ास इमारत |



अकबर ने कानून की तालीम हासिल की | कानून की तालीम हासिल के बाद उन्हें 1894 में इलाहाबद में डिस्ट्रिक्ट सेशन जज बनाया गया । उनकी काबिलियत से खुश होकर अंग्रेजो ने उन्हें 1898 में उन्हें खान बहादुर के खिताब से नवाजा ।

यह वही अकबर इलाहाबादी है जिनकी अदबी रूमानियत में उनको ढालने की जरूरत हमें वैसी नहीं जान पड़ती जैसे बाकी शायरों के बारे में लिखते हुए एक मजबूरी सी बन जाती है. उन्हें हम अपनी जुबान में लिख सकते हैं. क्योंकि वो हमारे बीच में अपनी जुबान के साथ मौजूद थे . जहां जरूरत हुई, जमके हिंगलिश और उर्दू का प्रयोग किया तो वहीं म्वाशरे को उसकी औकात बताने के लिए अगर जरुरत पडी तो वजनदार शब्दों का सहारा लेते गए |



दिनेश सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)

अकबर इलाहाबादी की गजलो में हाला यानी बादा का जिक्र भी खूब है लेकिन यह भी गौर ए काबिल है की अकबर ने शराब, दारू. कभी पी ही नहीं | अकबर शायरी मोहब्बत, मजहब, फिलॉसफी के साथ शराब की भी करते थे. उनकी सबसे मशहूर गजल शराब पर ही है. जिसे गुलाम अली ने गाकर अमर कर दिया है.| यह शहर का अदबी गहवारा कहा जाता है जहां हिन्दुस्तानी अकेडमी और अंजुमन रहे अदब जैसी अदबी संस्थाए है | लेकिन अकबर की सौ वी पूण्यतिथि में किसी भी अदबी संस्था या कथित उर्दू के रहबरों ने अकबर को याद नहीं किया |


ईस्ट के ऑक्सफ़ोर्ड का ढोल पीटने वाली इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और उसका शुमार उर्दू विभाग भी आज कुम्भकर्ण की नींद में सोया रहा | उर्दू का झंडा उठाने और उर्दू अदब की फ़िक्र की ठेकेदारी करने वाले इलाहबाद यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध वो अल्पसंख्यक डिग्री कालेज जो मुशायरो और महफ़िलो का पूरा साल राग अलापते रहते है उनकी भी जुबा अकबर इलाहबादी के नाम पर सिल गई | अवसरवादी सोंच के लोग लाख अकबर इलाहाबादी को नज़र अंदाज करने की कोशिश करे लेकिन उर्दू अदब का वह नामचीन सितारा उर्दू अदब की दुनिया में कभी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता | अकबर था , अकबर है और अकबर रहेगा .


लेख - दिनेश सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)


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