सबसे बड़ा सुधारक वही जो अपने आचरण को सुधारे: देवेंद्र मोहन भैया जी
देवेंद्र मोहन भैया जी ने सत्संग में बताया क्या होता है संत के साथ जुड़ने का सौभाग्य!
देवेंद्र मोहन भैया जी ने संगत से कहा कि बहुत सुंदर समय है। यह उत्सव का मौका है जब हम महाराज जी का जन्मदिवस मना रहे हैं। प्रत्येक वर्ष फरवरी के महीने में हुजूर कृपाल सिंह जी महाराज की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए सभी सत्संगी जीवन में आगे बढ़ते हैं। सवाल ये है कि हम संत का जन्मदिवस कैसे मनाएं। संत हमें क्या देना चाहता है और हम उससे क्या चाहते हैं। परमात्मा अगर संत रुप में मानव चोला धारण कर धराधाम पर अवतरित हुए हैं तो हम उनके सानिध्य के उत्सव को कैसे मनाएं। संतो के साथ जुड़ने का सौभाग्य हमें कहां तक ले जाएगा इस विशेषता को समझना जरुरी है।
स्वामी जी को याद करते हुए भैया जी ने कहा कि जब कोई संत धरधाम पर आता है उसके सानिध्य में आने से जीवन की सार्थकता बनती है। जब हम संत के धरती पर आने के उद्देश्यों को, उनके वचनों को, उनकी शिक्षाओं को सही प्रकार से समझते हैं तभी हम उसके सानिध्य का वास्तविक उत्सव मना सकते हैं।
भैया जी ने कहा कि आज के दौर में जिंदगी बहुत भागदौड़ वाली हो गई है। हम पूजा-पाठ, ध्यान योग आदि के लिए थोड़ा सा समय अगल कर देते हैं और सोचते हैं कि हम धार्मिक हो गए। परंतु, ये समझना आवश्यक है कि धर्म ना पुस्तकों में है, धर्म ना स्थानों में है बल्कि वास्तविक धर्म हमारे आचरण में है। अगर सही मायने में हमें धार्मिक होना है तो गुरु के बताए रास्ते चलना होगा, उनकी शिक्षाओं को अपने आचरण में लाना होगा।
संगत को संतो के साथ जुड़ने का सौभाग्य समझाते हुए भैया जी ने अपने गुरु का एक प्रेरक प्रसंग साझा किया। उन्होंने कहा कि एक सत्संग में महाराज जी ने संगत से पूछा कि कौन कौन मेरी सेवा करेगा। गुरु की सेवा का मौका देख कर बड़ी संख्या में वहां मौजूद सत्संगियों ने अपने हाथ उठा दिए। तब महाराज जी ने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप सभी जो मेरी सेवा करना चाहते हैं वो मेरे सुधारक बन जाएं। सत्संगी आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि दूसरों की गलतियां निकालना कोई कठिन काम नहीं है। दूसरों को टोकना, उनकी गलतियां निकालना तो सभी को अच्छा लगता है। तब महाराज जी ने कहा कि जो सत्संगी मेरी सेवा के रुप में मेरे सुधारक बनना चाहते हैं उन्हें शुरुआत खुद से करनी होगी।
अगर हम धन, दौलत, जमीन आदि की चिंताओं में डूबे रहेंगे तो हम बार-बार इन्हीं बंधनों में फंसे रहेगें। हमें अपने जीवन में अपने आप से अपने लिए सुंदर शुरुआत करनी पड़ेगी।
सिर्फ माला जपने, आरती करने या भजन कर लेने भर से काम नहीं बनेगा। महाराज जी इसे बगुला भक्ति कहते थे। अगर हमें वास्तविक रुप से सच को जानना है तो हमें संतों को मन में धारण करना पड़ेगा। दिखावे से हमारे जीवन में काम बनने वाला नहीं है।
भैयाजी ने कहा कि हमारे मन में इतने भटकाव है कि सत्संग पूरा होने के दस मिनट बाद कई लोग सत्संग का विषय भूल जाते हैं। कुछ लोग अगले दिन तक सत्संग मे बताई गई कई बातों को भूल जाते हैं। हमें इन भटकावों से बाहर निकलना पड़ेगा। जिस प्रकार आप किसी व्रत का संकल्प लेते हैं तो फिर आपको अन्न-जल कोई जोर जबरदस्ती से भी नहीं खिला सकता ठीक उसी प्रकार अपने मन के संकल्पों को मजबूत करना होगा। गुरु की बात को दिल में धारण कर उस पर आचरण का संकल्प लेना पड़ेगा।
हमारे पास इतना समय है कि जो कभी कभी काटे नहीं कटता। अगर आप अपने गुरु की शिक्षाओं को मन में धारण करेंगें, उनके बताए शुद्ध आचरण का संकल्प लेंगे तो जीवन में सुधार निश्चित है।
भैया जी ने कहा प्रत्येक प्राणी को अपने गुरु की बातों को मन में धारण करने के लिए तीन काम आवश्यक हैं। पहला गुरु की याद। दूसरा मन में गुरु के साथ एकांत और तीसरा गुरु के साथ एकांत में साधना। संतों की याद हमारे आचरण को बदल देगी और हमारा समय बेहतर तरीके से कटेगा।
राजधानी लखनऊ में विक्रम नगर स्थित स्वामी दिव्यानंद आश्रम में उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी देवेंद्र मोहन भैया जी के सत्संग को सुनने के लिए लखनऊ के अलावा, कानपुर, उन्नाव, बरेली, बाराबंकी, हरदोई, सीतापुर समेत कई जिलों से सत्संगी पहुंचे।
सत्संग में आए सत्संगियों ने सेवादार के रुप में सत्संग की व्यवस्थाओं को भी संभाला। देवेंद्र मोहन भैया जी के सत्संग के बाद संगत ने प्रसाद के रुप में लंगर चखा।
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