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मुसलमान मुगालते में ना रहे – जरुरी हुआ तो कागज दिखाने पड़ेगें और आंदोलन भूल कर ना करना



सरकार जानती है कि कौन सा कानून वापस होगा और कौन लगा रहेगा। सिर्फ सरकार ही नहीं भारत के लोग भी जानते हैं कि सीएए एनआरसी और कृषि कानून में क्या अंतर है।


ये संभव है कि ऐसे मुसलमान जो किसान हैं वो किसान आंदोलन में शामिल रहे हों लेकिन ऐसे किसान जो मुसलमान है और अपने धर्म की आड़ लेकर देश की अखंडता और सुरक्षा से कभी भी समझौता कर सकते हैं उनके लिए कोई रियायत नहीं होगी।


सीएए एनआरसी आंदोलन के नाम पर महीनों देश ने मुस्लिमों की एनार्की देखी है। दुनिया भर के मुसलमानों को भारत में इकट्ठा करने और गैंग बनाकर जालसाजी के जरिए उनके दस्तावेज बनवाने का खेल बहुत पुराना है। मोदी सरकार ने बहुत दिलेरी के साथ ना सिर्फ सीएए एनआरसी कानून बनाया और लागू किया बल्कि बहुत ही धैर्य के साथ देश के जगह जगह रास्ता जाम कर बैठे मुस्लिमों के आंदोलन को बेहद शाइस्तगी के साथ हैंडिल किया।



बावजूद इसके मुस्लिमों के रंग बदलते देर नहीं लगती। पीएम मोदी ने कृषि कानून वापस लेने का ऐलान क्या किया मुस्लिम नेताओं को लग रहा है कि मोदी सरकार घुटनों पर आ चुकी है अब उसे कैसे भी नचाया जा सकता है।


यही वजह है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी समाप्त करने की मांग उठाई है।


देवबंद में जारी बयान में मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि कृषि कानून वापसी के फैसले ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र और लोगों की शक्ति सर्वोपरि है। जो लोग सोचते हैं कि सरकार और संसद अधिक शक्तिशाली हैं, वह बिल्कुल गलत हैं। जनता ने एक बार फिर किसानों के रूप में अपनी ताकत का परिचय दिया है।


जाहिर है मदनी इस बयान के सहारे मुस्लिमों की लामबंद करने में लग गए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं मदनी का कहना है कि किसी भी जन आंदोलन को जबरदस्ती कुचला नहीं जा सकता लेकिन शायद मदनी ये भूल गए कि मुसलमानों का आंदोलन जमीन पर उगने वाली किसी फसल और फसल की कीमत को लेकर नहीं है।


मुसलमानों का आंदोलन ऐसे मुसलमानों को भारत की नागरिकता दिलाने के लिए है जो दरअसल किसी अन्य देश से भारत में ना सिर्फ जबरदस्ती घुस आए बल्कि फर्जी तरीके से कागजात बनवा कर जगह जगह सरकारी और गैर सरकारी जगहों पर बस्तियां बनाकर रहने भी लगे।



मुस्लिमों के आंदोलन को पिछली बार भी अरबों रुपए का विदेशी चंदा मिला था जो राजधानी दिल्ली और लखनऊ समेत देश के अलग अलग हिस्सों में अराजकता फैलाने के लिए इस्तेमाल हुआ। सरकार इस बात को बेहतर जानती है। अदालतें भी मामलों का संज्ञान ले चुकी हैं। मुनव्वर राणा जैसे शायर हों या हामिद अंसारी जैसे नेता (पूर्व उप राष्ट्रपति) कौम के नाम का झंडा उठाए इन लोगों ने तिरंगे को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


इसलिए जानकार भी मान रहे हैं कि मुसलमान कम से कम सीएए एनआरसी के मुद्दे पर कोई हरकत ना करे तो ही उसकी भलाई है।


हांलाकि कांग्रेस महासचवि प्रियंका गांधी ने कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद सीएए एनआरसी आंदोलन को दोबारा शुरु करने का इशारा दिया है जिसमें कांग्रेस पार्टी समर्थन भी करेगी। आपको याद दिला दे इससे पहले जब सीएए एनआरसी लागू होने के बाद देश में जगह जगह मुसलमान प्रदर्शन कर रहे थे तब सोनिया गांधी ने एक मंच से मुस्लिमों को हुसकाया था जिसके बाद दिल्ली और लखनऊ में जम कर अराजकता, हिंसा और आगजनी हुई थी।


अगर अब भी किसी के मन में मुस्लिमों के आंदोलन को लेकर शक-शुभा हो तो ऊपर की तस्वीर फिर से देख लीजिए। अपने हाथ में तख्ती लिए महिला खुद ही कह रही है कि चाहें कोई मुस्लिम घुसपैठिया हो या कोई मुस्लिम शरणार्थी हो उन सबको देशवासी मान लिया जाए। अब कौम के आगे देश कितना मायने रखता है इसे बार बार बताने की जरुरत नहीं।


टीम स्टेट टुडे



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