google.com, pub-3470501544538190, DIRECT, f08c47fec0942fa0
top of page

स्वामी दिव्यानंद के जन्मोत्सव पर संगत को जीवन की चेतन धारा से जोड़ दिया देवेंद्र मोहन भैयाजी ने



- स्वामी दिव्यानंद के जन्मोत्सव पर भैया जी के सत्संग में गुरुकृपा की अमृत वर्षा से सराबोर हुए सत्संगी



- जीवन चेतना को जगा गए देवेंद्र मोहन भैयाजी, हर्षोल्लास से मना ब्रह्मलीन स्वामी दिव्यानंद जी महाराज का 91वां जन्मदिन



मनुष्य जीवन बहुत खास है। देवी-देवता भी मानव जन्म के लिए तरसते हैं। मनुष्य जीवन भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि आध्यात्म को कमाने के लिए है। शरीर की बड़ाई सत्य को जानने के लिए है। आधे से ज्यादा समय गुजर चुका है, जो कमाया उसे चले जाना है। इस संसार को एक चेतन धारा चला रही है। उस चेतन धारा को जीते जी जान लेना ही जीवन हैं। जीवन चेतना की यह अमृत धारा स्वामी दिव्यानंद जी महाराज के 91 वर्षीय जन्मदिवस पर उनके आध्यामिक उत्तराधिकारी देवेंद्र मोहन भैया जी के सत्संग में भक्तों पर खूब बरसी।

स्वामी जी के जन्मोत्सव पर बरेली के भोजीपुरा स्थित स्वामी दिव्यानंद नगर आश्रम में भव्य सत्संग एवं भंडारा हुआ। इस मौके पर देश के कोने कोने से स्वामी दिव्यानंद के अनुयायी भैया जी के सत्संग में शामिल होने पहुंचे। देवेंद्र मोहन भैयाजी ने आश्रम पहुंची संगत और सभी गुरु प्रेमियों को स्वामी जी के जन्मोत्सव की शुभकामनाएं दीं।



भैयाजी ने गुरु कृपा का महात्म बताते हुए कहा कि यह जीवन परमात्मा से जुड़ने के लिए है। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अंतर्मुखी साधना यानी अंतर साधना से जुड़ना जरूरी है। 24 घंटे बहिर्मुखी साधनों में रहने से हमें परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। बहिर्मुखी साधनों जैसे 2 मिनट दिया जलाना, 2 मिनट आंख बंद करके बैठना आसान है परंतु मन को एकाग्र करके बैठना मुश्किल है। संसार के कोई भी काम कीजिए तो माफ है लेकिन यदि हम खुद से नहीं जुड़े तो मनुष्य जीवन व्यर्थ है। संत का जन्म तो मानव को खुद से जोड़ने के लिए होता है। वही हमें मन को स्थिर करना और जीवन के सच्चे उद्देश्य से जोड़ने के लिए बताते हैं।

भैया जी ने कहा कि गुरु की शिक्षा से ही आत्मिक विकास होता है और हर मनुष्य के आत्मिक विकास से ही सामाजिक विकास भी सुनिश्चित होता है। हमें बताया जाता है कि हमें कुछ समय मौन रहना जरूरी है। आंख बंद करके बैठने पर जिस चीज का ख्याल ज्यादा आए तो समझ लेना चाहिए कि अभी हमारा प्रयास अधूरा है। हमें मन को एकाग्र करने के लिए अभी बहुत प्रयास की जरूरत है।



भक्तिभाव से भरे सत्संगियों के बीच स्वामी जी को याद करते हुए भैया जी ने कहा कि इस मन को भागने से रोकना है। इसके लिए प्रतिदिन जब हम गुरु पर भरोसा करके प्रयास करते हैं तब जाकर एकाग्रता आनी शुरू होती है। जीवन में गुरु पर भरोसा होना चाहिए। भरोसा करके गुरु नाम से जुड़ना चाहिए। उस पर भरोसा करने से हमें निर्भय पद प्राप्त होता है।


जीवन में संतों की संगत और सत्संग बहुत जरूरी है। कृपाल सिंह जी महाराज कहते थे- जब हम गुरु की शरण में आ जाते हैं तो भरोसा धीरे-धीरे बनना शुरू हो जाता है। गुरु से जुड़ने से ही जीवन का महत्व समझ आता है। गुरु के पास समय व्यतीत करने पर हम शुभ कार्य शुभ कर्म करते हैं।



देवेंद्र मोहन भैया जी ने संगत को संकल्प कराया कि प्रतिदिन आधा घंटा ही प्रभु के आगे समर्पित होना है। ऐसा करने से हमारा भरोसा बढ़ता जाएगा। हमारे आध्यात्मिक कार्य से लेकर अन्य कार्य भी सुगमता से बनने लगेंगे।

उत्तर प्रदेश के नोएडा, कानपुर, लखनऊ, बाराबंकी, चित्रकूट, हरदोई, संडीला आश्रम अलावा पूर्वांचल, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों से बरेली के भोजीपुरा आश्रम पहुंची संगत का ख्याल करते हुए भैया जी ने कहा बहुतेरी असुविधाओं के बावजूद स्वामी जी की कृपा से उनके जन्मोत्सव पर प्रेमी भक्तों के सहयोग से भव्य भंडारा संभव हो सका।



इस मौके पर देश प्रदेश और स्थानीय स्तर के कई राजनेता भी कार्यक्रम में शामिल हुए। मुख्य अतिथियों में बरखेड़ा विधायक स्वामी प्रवक्ता नंद जी, मरोरी ब्लॉक प्रमुख, पीलीभीत, सभ्यता वर्मा, जयपुर से डाक्टर सुधा गर्ग, प्रशांत पटेल (प्रतिनिधि) अध्यक्ष जिला पंचायत बरेली शामिल हुए।


आयोजन को सफल बनाने में गेंदन लाल वैश्य बाबूजी, राजेंद्र प्रसाद गंगवार, मोहन स्वरूप छत्रपाल सिंह, वेद प्रकाश गुप्ता, रोशन लाल, वीरेंद्र गंगवार, जसवंत गंगवार, वीरपाल पटेल, डी के श्रीवास्तव, शांति स्वरूप, धनपत लाल, डोरीलाल प्रजापति, विजय पाल गंगवार, श्याम बिहारी, प्रीतम लाल, प्रेम शंकर, पूरन लाल, महेश शर्मा, नरेंद्र गुप्ता व कृपाल स्टूडियो बाराबंकी, उत्तम सिंह, संजय श्रीवास्तव, सी पी सिंह, रमेश चंद्र भाई, शंकर लाल, तेजभान राठौर, बहन प्रदीपा गंगवार, सुमन चौधरी, राजेश्वरी शर्मा, रमा गंगवार एवं समस्त साध संगत का योगदान रहा।



भैया जी ने स्वामी दिव्यानंद जी के 91 वर्षीय जन्मदिवस को भव्यतम स्वरुप देने के लिए सभी सहयोगियों, सत्संगियों और आगंतुकों को धन्यवाद दिया।


इस पूरे कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार करने और आयोजन को सफल बनाने में पीलीभीत, बरेली और भोजीपुरा के सत्संग अधिकारियों भी का बड़ा योगदान रहा।




स्वामी दिव्यानंद जी -


स्वामी दिव्यानंद जी भेदभाव रहित, संकीर्णता से परे सामाजिक सौहार्दपूर्ण, मानवतावादी एवं आध्यात्मिकता से विभूषित परम संत कृपाल सिंह जी के शिष्य रहे हैं.

संत कृपाल सिंह जी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर उन्हीं की प्रेरणा से मानव मूल्यों के विकास हेतु मानव निर्माण केंद्र के रूप में स्वामी दिव्यानंद जी ने अपने गुरु के नाम से संत कृपाल योग साधना आश्रम, संत कृपाल नगर की स्थापना संडीला, हरदोई में की.

स्वामी दिव्यानंद जी ने मानव सेवा को ही प्रभु भक्ति का मार्ग बताया.

उनके जीवनकाल में उन्होंने बच्चों की स्कूली शिक्षा के लिए स्कूल खुलवाए.

युवाओं के लिए डिग्री कॉलेज बनवाए.

बीमारों लोगों की सेवा के लिए अस्पतालों का निर्माण करवाया.

समय-समय पर चिकित्सा शिविर के द्वारा लोगों को निशुल्क इलाज उपलब्ध कराया.

स्वामी जी पर्यावरण प्रेमी भी थे. उन्होंने अपने कालखंड में वृहद वृक्षारोपण के कई कार्यक्रम चलाए.

स्वामी जी के मार्गदर्शन में चलने वाले जेंट्स इंटरनेशनल ने यू एन ओ में अपना स्थान बनाया.

स्वामी दिव्यानंद जी के कार्यकाल के दौरान संपूर्ण भारत में उनके लाखों अनुयाई वर्ष 2001 से स्वामी जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भैया जी के प्रयासों से अभी भी निरंतर बढ़ते जा रहे हैं.

स्वामी दिव्यानंद जी महाराज अपनी संगत से बहुत प्रेम करते थे.सांसारिक भवसागर में फंसे जन सामान्य की समस्याओं को वह बहुत ही गंभीरता से सुनते और बहुत ही प्रेम भाव से सब ठीक हो जाने की बात कहते. गुरुकृपा के अनेक अनुभव जब सत्संगी उनसे मिलते तो उनके सामने रखते.

स्वामी दिव्यानंद जी महाराज अक्सर जीवन के गूढ़ रहस्यों को बहुत ही सरल शब्दों में लोगों के सामने उदाहरण के साथ विस्तार पूर्वक बताते थे.

स्वामी जी ने अपने जीवन काल में अनेक पुस्तकें लिखी जिसमें धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ और जीवन के रहस्यों को खुलती कई पुस्तकें शामिल हैं. स्वामी जी ने चारों वेदों का सरल भाषा में अनुवाद भी किया.

स्वामी जी हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि गीता हमें कर्म का ज्ञान देती है और मानव सेवा प्रभु तक पहुंचने का सबसे सरल मार्ग है.



देवेंद्र मोहन भैया जी


स्वामी दिव्यानंद जी ने गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए विश्व में आध्यात्मिकता के संदेश को निरंतर प्रसारित करने के उद्देश्य से वर्ष 2001 में लाखों शिष्यों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार, अन्य राजनेताओं एवं पत्रकार बंधुओं की मौजूदगी में विशाल सत्संग एवं जनसभा के माध्यम से देवेंद्र मोहन भैया जी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी सार्वजनिक रूप से घोषित किया. प्रेम से सभी देवेंद्र मोहन जी को भैया जी कहकर संबोधित करते हैं. स्वामी जी की घोषणा के पश्चात भैया जी ने स्वयं को अपने गुरु एवं उनके मिशन के प्रति पूर्णतया समर्पित कर दिया तथा अपने गुरु के लक्ष्यों को पूर्ण करना ही अपना उद्देश्य बनाया.

भैया जी के मार्गदर्शन में संगत के सहयोग से शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं वृद्ध जनों की सेवा से जुड़े विविध सेवा कार्य निरंतर चलते हैं. इसके अंतर्गत बच्चों के लिए स्कूल, डिग्री कॉलेज, स्वास्थ्य केंद्र, समय-समय पर निशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर और वृहद वृक्षारोपण और योग साधना के कार्यक्रम आयोजित होते हैं.


टीम स्टेट टुडे

412 views0 comments

Comments


bottom of page