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आप "गुरुमुख" हैं या "मनमुख" ? – एक सवाल से सबका सच बाहर ले आए आध्यात्मिक गुरु Devendra Mohan “भैयाजी” 




गुरु पर किया गया भरोसा ही समस्याओं के समाधान का मार्ग है – देवेंद्र मोहन भैयाजी

 

आध्यात्मिक गुरु देवेंद्र मोहन भैयाजी के सत्संग में चिलचिलाती गर्मी भी बेअसर हो गई। सत्संगियों के प्रेम और समर्पण को देख भैयाजी भावविभोर हो गए और बोले- परमात्मा की दया कृपा आप पर हो रही है। वो विरले ही होते हैं जो अपने तमाम कामों को पीछे छोड़ सत्संग के लिए निकलते हैं।


जब कोई जीव यह जान लेता है कि उसके जीवन का असली लक्ष्य क्या है, वो किस उद्देश्य से धरती पर जन्मा है और फिर उस लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग पर कार्य करने लगता वही क्षण सबसे उत्तम होता है।


स्वामी दिव्यानंद जी महाराज को याद करते हुए भैयाजी ने कहा कि हमारे जीवन में शुद्धता आवश्यक है।


शारिरिक शुद्धता के लिए हम स्नान करते हैं जबकि मानसिक शुद्धता के लिए ध्यान आवश्यक है । जब हम गुरू की कही गई बात पर अमल करने लग जाते हैं जो जीवन शुभ कर्मों की तरफ जाने लगता है और हमारे जीवन में अध्यात्म की शुरूआत हो जाती है।

 

गुरु की शिक्षा हमें गलत संगत से बचाती है। गुरु प्रेरणा से हम अपने जीवन विकारों को चुन-चुन कर निकालने का मार्ग समझ पाते हैं। यदि हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी बात सबसे ज्यादा सुनी जाए तो हमें प्रभु की बातों को सुनने की आदत डालनी होगी। प्रभु की बातों से साक्षात्कार गुरु के बिना असंभव है।

 



भैयाजी ने कहा कि आमतौर पर हमारी मनोवृति बहुत कमज़ोर होती है। हमें लगता है कि गुरू का आर्शीवाद हमारे ऊपर है और हम निश्चिंत होकर कुछ भी सही गलत करेंगें तो गुरु संभाल लेगा। यह तभी होता है जब आप गुरु से स्वार्थवश जुड़ते हैं। जो लोग गुरु से प्रेमभाव से जुड़ते हैं उनके जीवन में गलतियों की गुंजाइश कम होती जाती है। गुरु की बातों पर ध्यान देने से मन गलत विचारों और कार्यों में नहीं उलझता।


इसलिए हमें अपने भीतर झांकना पड़ेगा कि हम गुरुमुख हैं या मनमुख। संत कृपाल सिंह जी महाराज को याद करते हुए भैया जी ने गुरुमुख और मनमुख का अर्थ बताया -


भैयाजी ने कहा कि गुरूमुख वो व्यक्ति होता है जो दुनिया में होने वाली घटनाओं, या उसको दिए गए दुःखों से प्रभावित नहीं होता बल्कि वो अपना मुख, अपनी मनोवृत्ति गुरू की याद में लगाए रहता है वो गुरूमुख कहलाता है।


जबकि मनमुख ऐसा व्यक्ति होता है जो दुनिया में होने वाली प्रत्येक घटना से स्वयं को प्रभावित महसूस करता है और अपने हर सुख दुख में हाय तौबा मचाता है। उसे परमसत्ता पर विश्वास नहीं होता।



गुरू की तस्वीर के आगे माथा टेकना कोई धर्म नहीं है बल्कि उसकी कही गई बातों पर चलना धर्म है। गुरू कोई तस्वीर नहीं बल्कि वो तो चेतन-धारा है।


गुरू की बातों पर अमल करने के लिए हमें संकल्प लेना होगा, ऐसा संकल्प जो हम खुद से भी न तोड़ पाए। गुरू हमारे आंतरिक एवं बाहरी जीवन में परिवर्तन करने आता है।


भोजीपुरा सत्संग को सफल बनाने में मोहन स्वरूप जी, शंकर लाल जी, रोशन लाल जी, वेद प्रकाश जी के साथ-साथ लंगर व्यवस्था में बहन प्रदीपा, बहन सुमन, महेश जी और उनकी टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा।



 

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